इसे कानूनी जटिलता कहें या न्याय में देरी, लेकिन चूरू की दुष्कर्म पीड़िता नाबालिग बच्ची को न चाहते हुए भी मां बनना पड़ा। बच्ची व उसकी विधवा मां को जब गर्भ का पता चला तो वे उसे गिराने की अनुमति के लिए काेर्ट पहुंची, उस समय 20 सप्ताह का भ्रूण बच्ची के गर्भ में था, जिसे गिराने की मंजूरी मिलना संभव था। लेकिन गर्भ गिराने की याचिका पहले ताे एससी-एसटी और पॉक्सो कोर्ट में घूमती रही।
बाद में 17 दिन बाद 29 सितंबर 2019 को कोर्ट ने उन्हें बताया कि यह मामला उनके ज्यूरिसडिक्शन पाॅवर में नहीं है। अब पीड़िता काे करीब 350 किमी दूर जोधपुर हाईकाेर्ट में जाने की सलाह मिली। इसके बाद 1 अक्टूबर 2019 को हाईकोर्ट में गर्भ गिराने की अनुमति देने के लिए रिट याचिका लगाई गई। मुकदमों के अंबार के बीच चौथे दिन यह याचिका मोशन हियरिंग में आई।
हाईकोर्ट ने सरकार की विभिन्न एजेंसी को नोटिस जारी किए और पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट बनाने के आदेश दिए। दस दिन बाद कंसीडरेशन के दौरान एएजी ने बताया कि भ्रूण अब 25 सप्ताह का हो गया और मां बच्चे को जन्म देने के लिए फिट है। मेडिकल रिपोर्ट में भी कहा गया कि भ्रूण का दिल धड़कने लगा है, वह मां को किक भी मारने लगा है। निरपराध बच्चे को दुनिया में आने से कोई कैसे रोक सकता है?
ऐसे में गर्भ गिराने की अनुमति नहीं मिली और बच्चे काे जन्म देना ही पड़ा। अब इस मामले में ही जाेधपुर हाईकाेर्ट की खंडपीठ गाइडलाइन तय करने वाली है। कानूनन 20 सप्ताह का गर्भ गिराया जा सकता है। अब केंद्र सरकार कैबिनेट में 24 सप्ताह तक का गर्भ गिराने की मंजूरी दे चुकी है। कई परिस्थितियाें में काेर्ट ने 31 सप्ताह तक के गर्भ काे गिराने की मंजूरी भी दी है।
जब दर्द एक सा तो न्याय अलग क्यों? इसी पर फैसला देगा हाईकाेर्ट
इस मामले काे लेकर हाईकाेर्ट की खंडपीठ ने फैसला सुरक्षित रखा है। हाईकाेर्ट इन मुद्दाें पर फैसला देगा कि क्या ऐसे हर केस में कोई नाबालिग लड़की या महिला दुष्कर्म के बाद गर्भवती हाेती है ताे उसे जबरन गर्भधारण करना पड़ेगा? क्या महिला को प्रजनन संबंधी विकल्प और शारीरिक अखंडता को बनाए रखने का अधिकार नहीं है? क्या उस अजन्मे बच्चे के जीवन का अधिकार उसकी मां के अधिकार से बड़ा है? भास्कर की अपील है कि मी-लॉर्ड इस फैसले में स्थायी गाइडलाइन ही बना दी जाए, ताकि किसी भी दुष्कर्म पीड़िता को चूरू की नाबालिग बेटी जैसी जिंदगी से नहीं गुजरना पड़े।
जयपुर में 2 पीड़िताओं के गर्भपात के ऑर्डर
पिछले माह ही हाईकोर्ट की जयपुर बैंच में भी दो ऐसे ही मामले आए। दोनों को गर्भपात की मंजूरी मिली। इनमें कोटा की पीड़िता 17 साल की नाबालिग थी। उसके साथ सितंबर 19 में दुष्कर्म हुआ और फरवरी 2020 में पता चला कि वह गर्भवती हो चुकी है। तब ट्रायल कोर्ट पाॅक्साे में गर्भपात की अर्जी लगी। कोर्ट ने कहा कि चूंकि गर्भ को 20 सप्ताह से ज्यादा हो गए हैं इसलिए वे गर्भपात की इजाजत नहीं दे सकते। हाईकोर्ट ने फैसला दिया तब तक भ्रूण 25 सप्ताह का हो चुका था, फिर भी न्यायाधीश ने कोटा सीएमएचओ को आदेश दिए कि वे मेडिकल बोर्ड बना कर गर्भपात कराएं। इसी तरह झुंझुनूं की एक बालिग दुष्कर्म पीड़िता की भी जयपुर बैंच में सुनवाई चल रही थी। न्यायाधीश ने उसे भी गर्भपात की इजाजत दी।
मां से बड़ा नहीं, अजन्मे बच्चे का अधिकार
दुष्कर्म के मामलों में अजन्मे बच्चे का अधिकार पीड़ित मां के हक से बड़ा नहीं हो सकता। खासकर जब पीड़िता पहले से नाबालिग हो। बाल विवाह कानून भी तो नाबालिग को मां बनने की इजाजत नहीं देता, फिर संविधान में हर व्यक्ति चाहे वह नाबालिग हो उसे राइट-टू-प्राइवेसी तो देता ही है। राइट-टू-प्राइवेसी के अंतर्गत उसे अपने शरीर को खुद की इच्छा के अनुसार रखने का अधिकार है। अलग-अलग केसों में अलग-अलग फैसले तो होते हैं लेकिन ऐसे मामलों में विभिन्न एजेंसियों के समन्वय के लिए एक तयशुदा गाइडलाइन तो बनानी ही जानी चाहिए।
यह हो सकती है भविष्य की गाइडलाइन
- अधीनस्थ कोर्ट के लिए दुष्कर्म व जबरन गर्भधारण के मामलों में हितधारक ट्रायल कोर्ट है इसलिए वहां अनजाने में गर्भपात की अर्जियां आती रहती हैं। यदि 20 सप्ताह के बाद की प्रेग्नेंसी का मामला आता तो पीड़िता को तुरंत हाईकोर्ट में भेजना चाहिए।
- राज्य सरकार के लिए सरकारी अस्पतालों में ही ऐसे मामलों की जांच होती है, इसलिए हर जिला स्तर पर मेडिकल बोर्ड होना चाहिए। इसमें केस टू केस स्थाई मेडिकल बोर्ड और
- तदर्थ मेडिकल बोर्ड स्थापित किए जा सकते हैं।
- पुलिस के लिए दुष्कर्म पीड़िता के पुलिस थाने पहुंचते ही सरकारी अस्पताल व रालसा को सूचित करना चाहिए। ताकि तत्काल मेडिकल बोर्ड बने और पीड़िता को उसके अधिकारों की जानकारी देने के साथ कानूनी प्रक्रिया में मदद मिले।
- मेडिकल बोर्ड के लिए एमटीपी कानून के तहत जिला स्तर पर गठित मेडिकल बोर्ड में स्त्री व बाल रोग विशेषज्ञ तथा मनोरोग का विशेषज्ञ शामिल होना चाहिए ताकि जबरन गर्भधारण की स्थिति में बिना समय बर्बाद किए पीड़िता सही निर्णय ले सके।